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सिर का सवाल
शेर की मांद से कोई शेर का सिर ले जाये,
पूरा जंगल ही शर्म से  तार-तार  हो  जाये।

बदइंतज़ामी में निगेहबान परिन्दे ही नहीं,
सारे जीवों  को कसूरबारों  में गिना जाय।


हादसा ये मामूली नहीं सिर  का  सवाल है,

क्यों न ऐसे दरिंदे के हाथों को काटा जाय।


अब  हम  किसी   की  जयादती  नहीं  सहेंगे,

ऐसा न हो रगों में बहता खून पानी हो जाय।


गर सारे शेर मिल कर एक आवाज़ में दहाड़ें,

यकीनन  वो दरिन्दा  दहशत से  ही मर जाये।

                    लेखक- प्रमोद कुमार शर्मा